25 फ़र॰ 2012

'आपका फ़ंडामेंटल राइट है चैन की नींद लेना'

 रामलीला मैदान में पुलिस कार्रवाई के मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी के लिए भी एक बेहद अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चैन की नींद लेना नागरिकों का मूल अधिकार है, क्योंकि यह जीवन का मूल आधार है। 

कोर्ट ने बाबा रामदेव के अनशन के दौरान रामलीला मैदान में सो रहे लोगों पर रात में कार्रवाई करने पर दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने ऐसा करके लोगों के फ़ंडामेंटल राइट का उल्लंघन किया है। 

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, 'इंसान की अच्छी सेहत के लिए नींद बेहद जरूरी है। यह इंसान के अस्तित्व से जुड़ी है। इसलिए यह जीवन की मूलभूत और बेसिक जरूरत है। इसके बिना जीवन संकट में पड़ सकता है।' 

जस्टिस बीएस चौहान और स्वतंत्र कुमार की बेंच ने मंगलवार को रामलीला मैदान में रात में शांति से सो रहे लोगों पर कार्रवाई के लिए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी। जस्टिस कुमार ने लीड जजमेंट लिखा, तो जस्टिस चौहान ने चैन की नींद की फ़ंडामेंटल राइट के तौर पर व्याख्या की। 

उन्होंने सोने के अधिकार को जीवन के लिए जरूरी और प्रिवेसी और भोजन के अधिकार की तरह फंडामेटल राइट माना। यह संविधान के आर्टिकल 21 में राइट टु लाइफ का हिस्सा है। उन्होंने अपने फैसले में कहा, 'प्रिवेसी और सोने का अधिकार सांस लेने, खाने और पानी पीने के अधिकार की तरह फंडामेंटल राइट है।' 

चौहान ने साथ ही कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि नागरिक सोने को ही अपना मूलभूत अधिकार मान लें। उन्होंने कहा, 'सोने का समय, स्थान और तरीका संविधान के दायरे में ही होना चाहिए। मसलन फंडामेटल राइट बताकर कोई सुप्रीम कोर्ट परिसर या फिर संसद में सोने को सही ठहराने का दावा नहीं कर सकता है।'